एक बैंकर होना नौकरी नहीं रोज की परीक्षा है

एक बैंकर होना नौकरी नहीं रोज की परीक्षा है

आपको क्या लगता है की एक बैंकर होना नौकरी नहीं रोज की परीक्षा है ? बैंकर की बाहरी चका चौंध एवं अंदर की दुनिया में जमीन आसमान का अंतर है। आइये आपको बैंकर के जीवन का एक दिन जीने का मौका देते हैं एक नजरिया आपका जिसमें सिर्फ चमक है मौज है ,मस्ती है और आराम है और एक नजरिया बैंकर का जिसमें वास्तविकता है जो बाहरी दुनिया से कोसों दूर है और जो आपको बताएगी की क्या वास्तव में बैंकर होना नौकरी नहीं रोज की परीक्षा है |

आज सुबह के 5:00 बजे मेरी नींद खुल गई पर क्यों मैंने तो 7:00 बजे का अलार्म लगाया था? और सोचा था कि सुबह आराम से उठूंगा | यह शायद उस चिंता की वजह से हुआ जो मुझे हो रही है क्योंकि आज मुझे बैंक जाकर एक बच्चे का शिक्षा ऋण करना है जिसके कॉलेज में एडमिशन की उम्मीद मेरे लोन करने पर टिकी हुई है | मुझे आज उस borrower के घर भी जाना है जिसकी आज EMI भरने की आखिरी तारीख है और वह मेरा फोन नहीं उठा रहा है | उसके बाद शाम को कलेक्टर साहब ने सारे बैंकर्स की जो मीटिंग रखी है वहां भी मुझे जाना है और उसमें उन शिकायतों का भी जवाब देना है जो आधी से ज्यादा झूठी है। मुझे आज उन नेता जी को भी जवाब देना है जो अपने भतीजे को लोन देने के लिए मुझ पर दबाव बना रहे है यह जानते हुए भी की उनका भतीजा इस लोन को ना तो लेने की पात्रता रखता है ना ही उसे भरने की इच्छा रखता है। सारा दिन बाहर के काम निपटाने के बाद शाम को मुझे अपने उच्च अधिकारियों को यह जवाब भी देना है कि मैं आज के टारगेट पूरे क्यों नहीं कर पाया ? इसके साथ ही उन सारी बातों के जवाब देना है जिनके कारण मैं उन अनगिनत कामों को नहीं कर पाया जो मुझे आज ही खत्म करने थे। सुबह के 5:00 बजे मैं अपने बिस्तर पर पड़े पड़े यह सारी बातें सोच रहे हैं आपको लगता है मैं अपने घर पर हूं और आराम कर रहा हूं? यह कहानी हर उसे बैंकर की है जो आपको लगता है आराम में है और मजे में है।

एक बैंकर के जीवन पर बाहरी व्यक्ति का दृष्टिकोण

आज शाखा के अच्छे ग्राहक शर्मा जी को  कुछ जरूरी काम के लिए पैसों की जरूरत होने से FD तुड़वाने के लिए शाखा में आना हुआ आते ही वे  सीधा ब्रांच मैनेजर के पास पहुंचे और अपनी आवश्यकता बताई। आज शाखा में इंटरनेट कनेक्टिविटी ना होने के कारण ब्रांच मैनेजर साहब के द्वारा अपने मोबाइल से एक व्यक्ति की सिबिल रिपोर्ट निकाली जा रही थी जिसे अपनी पत्नी के इलाज के लिए आज ही व्यक्तिगत ऋण की आवश्यकता थी तो मैनेजर साहब में शर्मा जी को थोड़ी देर इंतजार करने का कहकर अपने सामने वाली कुर्सी पर बिठा दिया | शर्मा जी कुर्सी पर बैठे-बैठे यह सोच रहे हैं की मैनेजर साहब को ना तो बैंक की चिंता है ना ही अपने अच्छे ग्राहक की। मुझे बिठाकर मोबाइल चला रहे हैं | इन सरकारी नौकरी वालों की यही मजे है बैठे-बैठे मोबाइल चलाने के पैसे मिलते हैं इनको। शर्मा जी का नंबर  आ जाने तक न जाने ऐसी कितनी बातें उन्होंने अपने मन में सोच ली।

आपको क्या लगता है यहाँ शर्मा जी गलत है या मैनेजर साहब?  मेरे हिसाब से दोनों अपनी अपनी जगह सही है यह सिर्फ एक घटना है जहां अपनी अपनी सोच के हिसाब से दोनों सही है लेकिन शर्मा जी ने अपने मन में यह बात पक्की कर ली की बैंक वाले अपना काम ढंग से नहीं करते लेकिन इस जैसी कई गलत अवधारणाओं के कारण ग्राहक के मन मे बैंकर की गलत छवि बनती है। बाहरी दुनिया के लिए बैंकर एक ऐसा व्यक्ति है जो AC में बैठकर सरकारी नियमो को ताक पर रखकर मजे कर रहा है।

अगर आपका पाला किसी सरकारी बाबू से पड़ा होगा तो आप अच्छे से जानते होंगे कि सरकारी विभागों में नियमो से चलकर व्यक्तिगत काम करवाना किसी संजीवनी बूटी लाने से कम नहीं है। आप वहां पैसे देकर अपना काम करवाते हैं और पैसे देने के बाद भी 15 दिन तक काम ना होने पर भी आप उन बाबूजी के पास हाथ जोड़कर निवेदन ही करते हैं लेकिन बैंक में जहां सारे काम नियम से होते हैं आपको 10 मिनट भी इंतजार करना स्वीकार नहीं होता। अगर कैशियर साहब लंच करने में 5 मिनट लेट हो जाए तो आप उनकी शिकायत लेकर मैनेजर साहब के पास पहुंच जाते हैं।  आपने बैंकर के जीवन के बारे में अपने मन मे जो सपनों से भी सुंदर दुनिया बना रखी है वह वास्तविकता से कोसो दूर है अगर बैंकर्स की दुनिया आपकी सोच वाली दुनिया जैसी सुंदर होती तो आए दिन आप बैंकर्सके द्वारा की गई आत्महत्या की खबरों को अखबारों बारे में ना पढ़ते।

एक बैंकर का वास्तविक जीवन

क्या सच में बैंकर की दुनिया सपनों जैसी सुंदर है तो जवाब होगा बिल्कुल नहीं | तो क्या बैंकर की दुनिया ऐसी है कि उसे आत्महत्या करना पड़े तो यह भी सरासर गलत है

वास्तव में बैंकर की दुनिया अच्छी तो है लेकिन अभाव है समय और संसाधनों का, अभाव है स्टाफ का ,अभाव है कार्य करवाते समय मानविक मूल्यों का ,अभाव है दूसरे के दुखों को समझने का ।

अब अगर आपके मन में सवाल आ रहा है कि जब इतनी परेशानियां है तो हम नौकरी क्यों कर रहे हैं तो इसका जवाब एक कहानी से देते हैं जो की वास्तविक घटना है

एक मैनेजर साहब को उनके साथी ने बताया कि उनके एक खाताधारक श्री रमेश ( नाम परिवर्तित) कि आज दुर्घटना में मृत्यु हो गई है | उनके साथ मोटरसाइकिल पर सवार उनकी पत्नी एवं 18 साल की पुत्री का भी इस दुखद घटना में देहांत हो गया है | श्री रमेश का उस शाखा में एक आवास ऋण चल रहा था जो की 10 लाख रुपए का था । इस घटना के बाद श्री रमेश के परिवार में मात्र चार सदस्य बच गए श्री रमेश के बूढे माता-पिता जिनकी उम्र लगभग 75 वर्ष है श्री रमेश की पुत्री उम्र 16 वर्ष एवं पुत्र उम्र 14 वर्ष। महीने की आखिरी तारीख आई और श्री रमेश की EMI भरना जरूरी था | EMI न भरे जाने पर खाता खराब होने से उस परिवार के सदस्यों को कानूनी कार्रवाई में उलझना पड़ता । मैनेजर साहब अजीब सी दुविधा में थे उनके पास इतनी शक्ति ना  थी कि वह उस परिवार के पास EMI के पैसे में मांगने जा पाए , ना ही मैनेजर साहब यह चाहते थे कि उस परिवार को किसी भी कानूनी दावपैच में फंसना पड़े। अंतिम विकल्प के रूप में मैनेजर साहब ने अपने पास से उसे महीने की EMI का पैसा भर दिया । कुछ 5 से 6 महीने तक मैनेजर साहब ने हर महीने अपने दोस्तों के सहयोग से एवं खुद के पास से उस खाते में ईएमआई की राशि जमा की लेकिन यह हमेशा नहीं चल सकता था तो उन्होंने श्री रमेश के परिवार से संपर्क किया लेकिन ना तो बच्चे ना ही उनके बूढ़े दादा दादी अब उस पैसों को भरने की स्थिति में थे। श्री रमेश द्वारा अपने खाते में जीवन बीमा करवाया गया था तो इन्हीं 5-6 महीने  में मैनेजर साहब ने प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना एवं प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना की बीमा राशि क्लेम की गयी जो की बीमा कंपनी द्वारा आवश्यक कार्रवाई के बाद भेज दी गई। 4 लाख रुपए की बीमा क्लेम की राशि प्राप्त हुई । मैनेजर साहब ने सारी घटना अपने उच्च अधिकारियों को बताइ। बैंक द्वारा मानविक मूल्यों को प्राथमिकता देते हुए प्राप्त बीमा राशि में से ₹300000 परिवार को दे दिए एवं बचे हुए ₹100000 को श्री रमेश के आवास में जमा कर दिया एवं शेष बचे ₹900000 बैंक ने अपने लाभ हानि खाते में से जमा किए एवं श्री रमेश का आवास ऋण बंद किया गया जिससे कि परिवार पर अब EMI भरने का कोई बोझ ना रहे

इतना ही नहीं बैंक ने श्री रमेश की छोटी पुत्री को आगे की पढ़ाई के लिए शिक्षा ऋण भी दिया।

आज इस घटना के 5 साल निकल जाने के बाद भी वह मैनेजर साहब उस परिवार के संपर्क में है और उन बच्चों को पढ़ाई के लिए आवश्यक मार्गदर्शन एवं सहयोग दे रहे है  उस परिवार की मदद करके जो सुख और आत्म संतुष्टि मैनेजर साहब को प्राप्त होती है वह अद्वितीय है । यह किसी भी मनुष्य को प्रेरणा से ओतप्रोत कर देने के लिए काफी है की जो काम आप कर रहे हैं उसमें किसी और का भला हो रहा है। ऐसी ही अनगिनत कहानीया है जो हमें काम करने के लिए प्रेरित करती है और ऊर्जावान बनाती  है | हम रोज किसी ऐसी कहानी का हिस्सा बनते हैं जिसमें हमारी उपस्थिति से किसी का काम आसान होता है किसी की मदद होती  है बस दुख की बात यह है कि आप सब तक ये सब कहानीया नहीं पहुचती जिसमें हम किसी भी मदद करते हैं। आप तक सिर्फ शर्मा जी की वह कहानी पहुंचती है जिसमें हम ऐसी में बैठकर मोबाइल चला रहे हैं।

इस लेख को लिखने का उद्देश्य आपकी संवेदना लेना नहीं है इस लेख का एकमात्र उद्देश्य है कि आपका वास्तविकता से सामना करवाया जाए । उम्मीद है अपने बैंकर के जीवन का जो एक दिनआपने  जिया है उसका पूर्ण आनंद लिया होगा।

अगर आपने भी किसी ऐसी घटना का अनुभव किया है जिसमें किसी बैंकर ने किसी की मदद की है तो जरूर शेयर करें

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